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Paddy: धान को नाइट्रोजन की दूसरी और आखिरी खुराक कब दें, सिंचाई का नियम क्या है?

फसल के लिए नाइट्रोजन और सिंचाई के नियम बहुत महत्वपूर्ण हैं। नाइट्रोजन की दूसरी और आखिरी खुराक पौधे की लंबाई लगभग 15 सेंटीमीटर होने पर देनी चाहिए।
 

धान की खेती के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस महीने में धान के खेत में सिंचाई से लेकर उर्वरक प्रबंधन तक हर चीज पर पूरा ध्यान देना होता है, नहीं तो फसल पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि धान में बाली बनने और फूल आने के समय खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखने के लिए जरूरत के हिसाब से सिंचाई करनी चाहिए।

 फसल के लिए नाइट्रोजन और सिंचाई के नियम बहुत महत्वपूर्ण हैं। नाइट्रोजन की दूसरी और आखिरी खुराक पौधे की लंबाई लगभग 15 सेंटीमीटर होने पर देनी चाहिए। सिंचाई का नियम यह है कि पौधों को 5-7 सेंटीमीटर पानी में रखना चाहिए, और जब पौधे की लंबाई 25 सेंटीमीटर हो जाए तो सिंचाई बंद कर देना चाहिए।

नाइट्रोजन की खुराक के बारे में सलाह दी जाती है कि इसकी दूसरी और अंतिम मात्रा 50-55 दिनों के बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में दी जानी चाहिए। शोध में सामने आया है कि धान में पहली सिंचाई के बाद दूसरी सिंचाई खेत का पानी सूखने के 2 से 3 दिन बाद करनी चाहिए। ऐसा करने से न सिर्फ पानी की जरूरत कम होती है,

बल्कि पैदावार भी बढ़ती है। उर्वरक की बात करें तो धान में नाइट्रोजन की दूसरी और अंतिम मात्रा 50-55 दिनों के बाद यानी बाली बनने की शुरुआती अवस्था में अधिक उपज देने वाली उन्नत किस्मों के लिए 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और सुगंधित किस्मों के लिए 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से टॉप ड्रेसिंग के रूप में इस्तेमाल करनी चाहिए। कब, कितनी मात्रा में उर्वरक देना चाहिए? नाइट्रोजन टॉप ड्रेसिंग करते समय ध्यान रखें कि धान के खेत में 2-3 सेमी से अधिक पानी न हो। इस माह धान में ब्लास्ट रोग लगने का खतरा अधिक रहता है।

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यह रोग फफूंद से फैलता है। इस रोग से पौधे के सभी भाग प्रभावित होते हैं। असिंचित धान में यह रोग अधिक लगता है। यह रोग लगने पर पत्तियां मुरझाकर सूख जाती हैं। गांठों पर भूरे धब्बे भी बन जाते हैं। इससे पूरा पौधा खराब हो जाता है। ब्लास्ट रोग लगने पर धान के पौधों के तने की गांठें पूरी तरह या आंशिक रूप से काली पड़ जाती हैं। फफूंद के हमले से टहनियों की गांठों पर भूरे धब्बे बन जाते हैं। इससे गांठ चारों ओर से घेरने से पौधे टूट जाते हैं। बालियों के निचले डंठल पर भूरे धब्बे बन जाते हैं। यह रोग जुलाई-सितंबर में अधिक लगता है। इस रोग के नियंत्रण के लिए बुवाई से पहले बीजों को 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से ट्राइसाइक्लाजोल से उपचारित करना चाहिए। धान के पौधे में बालियां निकलने व फूल आने की अवस्था के दौरान आवश्यकता पड़ने पर

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