Cultivation Peas: अगर आप भी करना चाहते हैं मटर की खेती, तो करें इन वैरायटी का प्रयोग, होगी बंपर पैदावार
Cultivation of Peas: पूसा के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह दी है कि तापमान को ध्यान में रखते हुए मटर की बुआई में अब और देरी न करें। अन्यथा न केवल इसकी पैदावार कम होगी बल्कि फसल पर कीटों का प्रकोप भी अधिक हो सकता है, जिससे खर्च बढ़ जाएगा। मटर की बुआई का समय अक्टूबर के अंत से 15 नवंबर तक है।
मटर की छोटे दाने वाली किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर 50-60 किलोग्राम बीज और बड़े दाने वाली किस्मों के लिए 80-90 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होगी। अगर अच्छी पैदावार लेनी है तो बुआई के लिए उन्नत किस्मों का चयन करना होगा। इतना ही नहीं, बीज प्रमाणित जगह से ही खरीदें ताकि शुद्धता की गारंटी रहे।
देश के विभिन्न क्षेत्रों और परिस्थितियों के लिए अधिसूचित ( Advanced varieties of peas include HFP 715, Punjab-89, Kota Pea 1, IPFD 12-8, IPFD 13-2, Pant Pea 250, HFP 1428 ) मटर की उन्नत किस्मों में एचएफपी 715, पंजाब-89, कोटा मटर 1, आईपीएफडी 12-8, आईपीएफडी 13-2, पंत मटर 250, एचएफपी 1428 (नई किस्म) और सपना शामिल हैं। आप इस श्रृंखला में पूसा प्रगति और आर्किल को भी शामिल कर सकते हैं।
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बीजोपचार जरूरी ( Seed treatment is necessary )
मटर की खेती में मिट्टी और बीज से संबंधित कई फफूंद और जीवाणु जनित रोग होते हैं। ये अंकुरण के दौरान और बाद में बीजों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। ऐसी स्थिति में बीजों के अच्छे अंकुरण और स्वस्थ पौधों के लिए मटर की बुवाई से पहले बीजोपचार की सलाह दी जाती है। बीजों को फफूंदनाशक से उपचारित करना चाहिए। बीज जनित रोगों के नियंत्रण के लिए थायरम 75%, कार्बेन्डाजिम 50% (2:1) 3.0 ग्राम या ट्राइकोडर्मा 4.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज को बुवाई से पहले उपचारित करना चाहिए। कितनी खाद डालें?
(matar ki variety) मटर की खेती में मिट्टी परीक्षण के आधार पर खाद का प्रयोग किया जाए तो अच्छा रहेगा। सामान्य परिस्थितियों में मटर की फसल के लिए नाइट्रोजन 15-20 किलोग्राम, फास्फोरस 40 किलोग्राम, पोटाश 20 किलोग्राम और सल्फर 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर डालें। मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने पर प्रति हेक्टेयर 15-20 किलोग्राम जिंक सल्फेट तथा 1.0-1.5 किलोग्राम अमोनियम मोलिब्डेट का प्रयोग करने की संस्तुति की गई है।
खरपतवारों पर कैसे नियंत्रण होगा? ( How will weeds be controlled? )
खरपतवारों ( Weeds ) की समस्या पर नियंत्रण के लिए पौधों की पंक्तियों के बीच उचित दूरी काफी मददगार साबित होती है। एक या दो निराई-गुड़ाई पर्याप्त होती है। पहली निराई-गुड़ाई पहली सिंचाई से पहले तथा दूसरी निराई-गुड़ाई आवश्यकतानुसार सिंचाई के बाद खरपतवार आने पर करनी चाहिए। एक निराई-गुड़ाई बुवाई के 25-30 दिन बाद करनी चाहिए। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से जुड़े कृषि वैज्ञानिकों ने भी खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण के लिए जानकारी दी है।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार फ्लूक्लोरोलिन 45 प्रतिशत ईसी की 2.2 लीटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर लगभग 800-1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई से तुरंत पहले मिट्टी में मिला देना चाहिए। या पेन्डीमेथालिन 30 प्रतिशत ई.सी. की 3.30 लीटर या एलाक्लोर 50 प्रतिशत ई.सी. की 4.0 लीटर या बेसालिन की 0.75-1.0 किग्रा. मात्रा को उपरोक्त अनुसार प्रति हेक्टेयर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नोजल से बुवाई के 2-3 दिन के अन्दर समान रूप से छिड़काव करना चाहिए। ऐसा करने से खरपतवार नियंत्रण में लाभ होगा।