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Pea cultivation: इन विधियों से बढ़ा सकते हैं मटर की पैदावार, जल्द आजमाएं किसान

 
Pea cultivation:  भारत एक कृषि प्रधान देश है. यहां पर किसान धान-गेहूं के साथ-साथ दलहनी फसलों की भी बड़े स्तर पर खेती करते हैं. अरहर, मसूर, मूंग और उड़द सहित कई ऐसी दालें हैं, जिसकी खेती मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश सहित लगभग अधिकांश राज्यों में होती है. लेकिन मटर की बात ही अलग है. मटर का उपयोग दाल से ज्यादा सब्जी के रूप में किया जाता है. यही वजह है कि हरी मटर की मार्केट में पूरे साल मांग रहती है. इसका रेट भी सर्दी के मौसम में 40 से 50 रुपये किलो रहता है. ऐसे में अगर मटर की अच्छी उपज होगी तो किसानों को मुनाफा भी ज्यादा होगा. लेकिन अच्छी उपज के लिए किसानों को खेती की कुछ तकनीकों को अपनाना होगा. Also Read: Haryana: हरियाणा की हिमानी और शर्मिला बनीं गुरुग्राम की पहली महिला ड्रोन पायलट, अब बनेंगी करोड़पति, जानिए कैसे
Pea cultivation:  मटर की खेती
मटर की बुवाई करने से पहले सबसे अधिक भूमि का चुनाव करना होता है. आप किसी भी तरह के खेत में मटर की बुवाई नहीं कर सकते हैं. ऐसे मटर की खेती के लिए दोमट और बलुई मिट्टी अच्छी मानी गई है. दोमट और बलुई मिट्टी में मटर की खेती करने पर बेहतर उपज मिलती है. वहीं, मिट्टी का पीएच मान 6-7.5 होना चाहिए. साथ ही बुवाई करने से पहले खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई करनी चाहिए. इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर दें. अगर मिट्टी में दीमक, तना मक्खी और लीफ माइनर का प्रकोप दिखाई दे रहा है, तो खेती की अंतिम जुताई करते समय फोरेट 10जी 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर छिड़काव कर दें. इससे फसल में रोग लगने की संभावना नहीं रहती है.
Pea cultivation:  इस तरह करें अच्छी क्वालिटी के बीजों का चुनाव
बुवाई करने से बीच की क्वालिटी और मात्रा पर भी ध्यान देना चाहिए. अगर आप अच्छी क्वालिटी के बीज खेत में नहीं डालेंगे, तो बेहतर उपज नहीं मिलेगी. अगर आप मटर की ऊंचाई वाली किस्म की बुवाई करना चाहते हैं, तो प्रति हेक्टेयर 70 से 80 किलो बीज खेत में डालें. वहीं, बौनी किस्म के लिए बीज की मात्रा 100 किलो रखें. खास बात यह है कि बोनी किस्म के लिए बुवाई का उचित समय 15 अक्टुबर से 15 नवम्बर है. साथ ही बीजों की बुवाई हमेशा कतार में ही करें.
Pea cultivation:  बीजों के उपचार करने का बेहतर तरीका
कृषि एक्सपर्ट की माने तो मटर की बुवाई करने से पहले बीजों का उपचार कर लें. इससे बीज अच्छी तरह से अंकुरित होते हैं, साथ ही फसल में कीट भी कम लगते हैं. आप बीज जनित रोगों से बचाव के लिए फफूंदनाशक दवा थायरम + कार्बनडाजिम (2$1) 3 ग्राम प्रति किलो की दर से बीजों का उपचार कर सकते हैं. वहीं, रस चूसक कीटों से बचाव के लिए थायोमिथाक्जाम 3 ग्राम प्रति किलो की दर से बीजों का उपचार करें. जबकि, फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिय बुवाई के समय खेत में पोटाश 60 किलो और सल्फर 20 किलो प्रति हेक्टेयर डालें.
Pea cultivation:  रोग से बचाने के लिए करें ये उपाय
पाला और शीतलहर से फसल को बचाने के लिए घुलनशील सल्फर 80 डब्लू पी 2ग्राम/लीटर + बोरोन 1 ग्राम/लीटर का घोल बनाकर तैयार कर लें. इसके बाद फसल के ऊपर इसका छिड़काव करें. इससे मटर की फसल पर पाले और शीतलहर का असर कम पड़ता है. वहीं, भभूतिया रोग से फसल को बचाने के लिए फफूंद नाशक दवा से बीजों का पचार करें. साथ ही आप घुलनशील सल्फर 1-1.5 ग्राम प्रति लीटर या मेंकेजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से 500 लीटर पानी में मिलाकर घोल तैयार कर लें. इसके बाद आप तैयार घोल का प्रति हेक्टेयर स्प्रे कर सकते हैं. Also Read: kills hair lice: सिर के जूं मारने वाली दवा सरसों और ज्वार का कीट को कर सकती है खत्म, जानें कैसे प्रयोग करें
Pea cultivation:  ये हैं बेहतरीन किस्में
ऐसे मार्केट में भूतिया रोग निरोधक मटर की कई किस्में भी हैं, जिसमें प्रकाष, आई पीएफडी 99-13, आईपीएफडी 1-10 और जीएम- 6 का नाम शामिल है. अगर आप ऊपर बताई गई विधि से खेती करते हैं, तो 20 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मटर का उत्पादन हो सकता है.