Movie prime

Mustard Farming: सरसों की पैदावार कैसे बढ़ाएं? जानें सल्फर के लाभ और वैज्ञानिक सुझाव

सरसों के लिए सल्फर कितना जरूरी है? जानें सल्फर का महत्व और कृषि वैज्ञानिकों की वो अहम बातें जो किसानों को ध्यान में रखनी चाहिए।
 
राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन के तहत तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता का लक्ष्य।
सरसों की फसल में सल्फर का प्रयोगए बढ़ाएगा तेल की मात्रा।
मिट्टी में सल्फर की कमी से नाइट्रोजन उपयोग में कमीए यूरिया गोल्ड का महत्व।
वैज्ञानिकों की सलाह: सरसों की बुवाई में सल्फरए बीज दर और दूरी का सही उपयोग करें।

देश में खाद्य तेलों की बढ़ती आवश्यकता और इसके आयात पर भारी मात्रा के खर्च को कम करने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (National Food Oil Mission) शुरू किया है। इस मिशन का उद्देश्य भारत को तिलहन (oilseeds) के उत्पादन में स्वावलंबी बनाना है। इस मिशन के तहत अगले 7 वर्षों में उत्पादन को बढ़ाकर खाद्य तेलों की आयात निर्भरता को समाप्त करना है। 

हालांकि, यह लक्ष्य तब ही पूरा होगा जब किसान (Farmer) खेती के तरीकों में बदलाव करेंगे, किसानों को बाजार में उचित दाम मिलेगा और अच्छी गुणवत्ता वाले बीज (high-quality seeds) मौजूद होंगे। इन दिनों तिलहन की प्रमुख फसल *सरसों* (mustard) की बुवाई का समय चल रहा है और कृषि वैज्ञानिक (agricultural scientists) किसानों को एहतियात बरतने की सलाह दे रहे हैं ताकि उनकी मेहनत बेकार न जाए। खासकर, सरसों की अच्छी पैदावार और तेल की मात्रा के लिए खेत में *सल्फर* (sulfur) डालनी बहुत ही जरूरी काम है।

जानें सरसों की खेती में सल्फर का महत्व

सल्फर बीजों में तेल की मात्रा बढ़ाने में कारगर साबित होता है। बढ़िया सरसों (quality mustard) में लगभग 42% तक तेल पाया जाता है। अगर खेत में सल्फर की मात्रा कम है तो सरसों की गुणवत्ता और पैदावार दोनों प्रभावित हो सकते हैं। *सरकार* ने इस कमी को दूर करने के लिए *यूरिया गोल्ड* (Urea Gold) नामक सल्फर कोटेड यूरिया लॉन्च की है। इसका खेत में प्रयोग करने से पौधों की *नाइट्रोजन* (nitrogen) को अवशोषित करने की क्षमता बढ़ती है, जिसके कारण फसल का विकास तेजी से होता है। 

सरसों के लिए सल्फर की आवश्यकता

*कृषि वैज्ञानिकों* के मुताबिक, मिट्टी परीक्षण (soil testing) के उपरांत ही सल्फर की कमी का पता लगाया जा सकता है। अगर मिट्टी में सल्फर की कमी पाई जाती है तो 8 किलोग्राम प्रति एकड़ सल्फर का प्रयोग करना लाभदायक हो सकता है। इस कारण से सरसों में तेल की मात्रा बढ़ती है, जो किसानों के लिए लाभप्रद है। *बुवाई* (sowing) से पहले खेत में नमी बनाए रखें और यह सुनिश्चित करें कि खेत की जमीन में सल्फर का उचित स्तर हो। 

खेती-बाड़ी की लेटेस्ट खबरों के अलावा ताजा मंडी भाव की जानकारी के लिए ज्वाइन करें व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करें

सरसों का उन्नत बीज व किस्में

किसानों को सलाह दी जाती है कि वे केवल विश्वसनीय स्रोत से ही *बीज* (seeds) खरीदें। सरसों की कुछ उन्नत किस्में जैसे *पूसा विजय* (Pusa Vijay), पूसा सरसों-29 व पूसा सरसों-32 का चयन किसान कर सकते हैं। वहीं किसानों को चाहिए कि वो बिजाई के दौरान प्रति एकड़ डेढ़ से यदि 2 किलोग्राम बीज डालें (seed rate per acre)। अगर किसान ऐसा करता है तो बेहतर परिणाम मिलने की संभावना बढ़ जाती है। *बुवाई* के दौरान ध्यान रखें कि बिजाई कतारों में करें और पौधों के बीच उचित दूरी (spacing) बनाए रखें। 

पौधों के बीच उचित दूरी क्यों है आवश्यक?

सरसों की बुवाई/बिजाई में पौधों के बीच की दूरी भी काफी महत्वपूर्ण होती है। कम फैलने वाली किस्मों को 30 सेमी की दूरी पर और ज्यादा फैलने वाली किस्मों को 45 से 50 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में बोना चाहिए। इससे पौधों को बढ़वार के लिए पर्याप्त जगह मिलती है और फसल का विकास बेहतर होता है। 

2024-25 के उत्पादन का लक्ष्य

फसल वर्ष 2023-24 में किसानों ने पहली बार 250 लाख एकड़ से अधिक जमीन में सरसों की बिजाई की थी जिसके चलते रिकॉर्ड उत्पादन हुआ था। वहीं इस वर्ष केंद्र सरकार ने *रबी सीजन* (Rabi season) 2024-25 के लिए 138 लाख मीट्रिक टन सरसों की पैदावार का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए न केवल खेती का क्षेत्रफल बढ़ाना पड़ेगा बल्कि वैज्ञानिक तरीकों (scientific methods) से भी काम करने की आवश्यकता रहेगी।

सरसों उत्पादन में आत्मनिर्भरता (self-sufficiency in mustard production) का लक्ष्य केवल तभी पॉसिबल हो पाएगा जब किसान आधुनिक खेती के तरीकों को अपनाता है और उचित मार्गदर्शन के साथ बिजाई करता है। वहीं सल्फर का सही उपयोग और बीज की आधुनिक किस्मों का चयन भी इस दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकता है।

News Hub