Aapni Agri, Farming लोध्र 1 प्रमुख औषधि का पौधा है जिसका वैज्ञानिक नाम है. इसे लोध्र वृक्ष के रूप में भी जाना जाता है. यह 1 मध्यम आकार का औषधीय पेड़ है जो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में भी पाया जाता है. लोध्र के वृक्ष की ऊंचाई लगभग 10-12 मीटर तक हो सकती है. इसके पत्ते छोटे, गहरे हरे और चमकदार भी होते हैं. फूल सफेद रंग के होते हैं और मध्यम आकार के फल हरे या पीले रंग के होते हैं.
छाल और जड़ में होते हैं गुणकारी तत्व
लोध्र एक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधि का पौधा होता है. जिसका उपयोग विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज में किया जाता है. इसके पौधे की छाल और जड़ का उपयोग अधिकतर कर्कटरोग, मांसपेशियों के रोग, रक्तपुरीष संबंधित विकार, मलरोग, पीरियड्स संबंधित समस्याएं, गर्भाशय संबंधित विकार, गर्भनिरोधक औषधियों के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए भी किया जाता है. लोध्र की छाल और जड़ में गुणकारी तत्व जैसे कि फ्लावोनॉइड्स, टैनिन, वेटिवेरोल, लोध्रोल, लोध्रिन, एपिकटिन, बेतुलिनिक एसिड, लोध्रिकोलिक एसिड, बेटुलिक एसिड, लोध्रोसाइड आदि होते हैं जो शारीरिक संतुलन को सुधारने, त्वचा के रोग, श्वसन रोग, रक्त के संचार, गर्भनली के रोग, पीरियड्स संबंधित समस्याएं और गर्भनिरोधक दवाओं के प्रभाव को दूर करने में सहायता करते हैं. आज के समय में इस पौधे को बहुत सी कंपनियां दवाएं बनाने के लिए प्रयोग में लाती हैं. Also Read:
अपने बगीचे के लिए रंगों और साइज़ के आधार पर पसंद करें गुलाब की यह सर्वोत्तम किस्में लोध्र से बनने वाली कुछ आयुर्वेदिक औषधियों के नाम निम्नलिखित हैंः
लोध्रसव लोध्रस्तव लोध्रदि गुटिका लोध्रदि चूर्ण लोध्रस्तकचूर्ण लोध्रसव अरिष्ट लोध्रस्थान चूर्ण
प्राकृतिक रूप से उगता है यह औषधि का पौधा
यह पौधा वनों में प्राकृतिक रूप से उगता है, इसलिए इसका विशेष फसल की चरम नहीं होता है. लोध्र को सामान्य बीजों के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसे बीजों से प्रजनन और रोपण के लिए उगाया जाता है। यह विशेष ध्यान देता है कि लोध्र की पूरी फसल का निर्माण करने के लिए उचित माटी, उपयुक्त पानी और उचित मासिक औषधीय देखभाल की आवश्यकता होती है। लेकिन इसके आर्थिक महत्त्व को देखते हुए आज विश्व में इसकी खेती कई देशों में शुरू हो गई है. भारत में इसकी खेती उत्तराखंड, जम्मूकश्मीर, लद्दाख आदि बहुत से ठंडी इलाको में प्रमुखता से की जाती है. इन वृक्षों को जाड़े के मौसम में ही लगाया जाता है. साथ ही इनके फूलों का विकास मार्च से मई तक होता है और फल जून से जुलाई के बीच पकता है। इनके फलों से लेकर पत्तियों तक का उपयोग हम कई तरह के आयुर्वेदिक कामों में करते हैं.