Lauki Ki Kheti: देश में सर्दी अब अपने अंतिम पड़ाव पर है और गर्मी दस्तक देने वाली है। इस बीच, कई किसान अब गर्मियों में बोई जाने वाली लौकी की फसल लगाने की तैयारी कर रहे होंगे। किसी भी फसल की खेती को लेकर किसानों के मन में सवाल होते हैं. ऐसे ही कुछ सवाल लौकी किसानों के मन में उठते हैं. जैसे लौकी की खेती कैसे करें, उत्पादन कैसे बढ़ाएं और घाटा भी न सहें।
Also Read: Business Idea: घोड़ा गधा खच्चर ऊंट पालने पर सरकार दे रही भारी लोन, जानें पूरी जानकारी Lauki Ki Kheti: खेती करते समय इन बातों का रखें ध्यान
लौकी की खेती में अच्छी पैदावार पाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा नवीन, पूसा संतुष्टि, पूसा संदेश द्वारा विकसित किस्मों को लगाया जा सकता है. इस फसल को नालियाँ बनाकर बोया या रोपा जाता है। जहां तक संभव हो नाली का रुख उत्तर से दक्षिण की ओर करना चाहिए तथा पौधे एवं बीज नाली के पूर्व दिशा में रोपने चाहिए।
Lauki Ki Kheti: गर्म और आर्द्र जलवायु सर्वोत्तम
लौकी की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सर्वोत्तम होती है. लौकी के पौधे अधिक ठंड सहन नहीं कर पाते. इसलिए इनकी खेती मुख्य रूप से मध्य भारत और आसपास के क्षेत्रों में की जाती है। इसकी खेती के लिए इष्टतम तापमान 32 से 38 डिग्री सेल्सियस है। यानी गर्म राज्यों में इसकी अच्छी खेती होती है.
Lauki Ki Kheti: सही भूमि का चयन
इसके अलावा खेती के लिए सही भूमि का चयन, बुआई का समय, बीज उपचार, उर्वरक प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, कीट प्रबंधन जैसी बातों पर भी ध्यान देना चाहिए। अगर किसान इन सभी बातों को ध्यान में रखकर खेती करें तो उत्पादन अच्छा होगा और मुनाफा दोगुना हो जाएगा.
Lauki Ki Kheti: नाली की दूरी कितनी रखें
गर्मियों में नाली से नाली की दूरी 3 मी. बरसात के मौसम में नाली से नाली की दूरी रखें। पौधे से पौधे की दूरी 90 सेमी रखें।
Also Read: Rail ticket price: रेल यात्रियों को बड़ी राहत, आधा हुआ पैसेंजर ट्रेन का किराया Lauki Ki Kheti: लोकी को कीटों से कैसे बचाएं
खेत में लाल कीड़ों, जिन्हें लाल कद्दू बीटल भी कहा जाता है, का प्रकोप पौधे की 2 से 3 पत्ती अवस्था में बहुत अधिक होता है। इससे बचने के लिए किसानों को 200 मिली डाइक्लोरोफान को 200 मिली पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए। इस कीट को मारने के लिए सूर्योदय से पहले छिड़काव करें। सूर्योदय के बाद ये कीड़े भूमिगत छिप जाते हैं। जहां तक संभव हो बरसात के मौसम में मचान पर पौधे उगाएं। इससे बारिश में पौधों के सड़ने की समस्या कम होगी और पैदावार बेहतर होगी