Category : ग्रामीण उद्योग
ग्रामीण उद्योग की परिधि में वे सभी उद्योग-धंधे आते हैं जो ग्रामवासी अपने घरों के आस-पास पारम्परिक रीतियों अथवा जाति-विशेष के कौशल का उपयोग करते हुए निष्पादित करते हैं।
यही कारण है कि सामान्यतया स्थानीय कच्चे माल, कौशल, पूँजी, तकनीक, उपभोग पर आधारित उत्पादन को ग्रामोद्योग की संज्ञा दी जाती है।
ऐसे उद्योग को कुटीर उद्योग, लघु उद्योग एवं कृषि आधारित उद्योग कहते हैं।
ग्रामीण उद्योगों के विकास-विस्तार की दिशा में नियमित कार्यशील संस्था खादी और ग्रामोद्योग आयोग के संशोधित अधिनियम 1987 के अनुसार ग्रामोद्योग का अर्थ है
ग्रामीण क्षेत्र, जिसकी जनसंख्या 10 हजार या इसके आस-पास हो, में स्थापित कोई उद्योग जो बिजली का इस्तेमाल करके या बिना इस्तेमाल किए कोई वस्तु उत्पादित करता हो या कोई सेवा करता है।
जिसमें स्थिर पूँजी निवेश (संयंत्र, मशीनरी, भूमि और भवन में) प्रति कारीगर या कार्यकर्ता 15,000 रुपये से अधिक न हो।
1949-50 के भारतीय संरक्षण आयोग ने कुटीर एवं लघु उद्योग को अलग-अलग परिभाषित किया है।