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खरीफ फसलों की बुवाई कैसे करें, कम लागत में अच्छी उपज पाएं

भारत में मुख्य रूप से तीन ऋतुएँ होती हैं, सर्दी, गर्मी और बरसात। प्रत्येक ऋतु के अनुसार अलग-अलग फसलें बोई जाती हैं। राजस्थान की जलवायु को देखें तो फसल उत्पादन की दृष्टि से वर्षा ऋतु बहुत महत्वपूर्ण है। चूँकि यहाँ का क्षेत्र सिंचित नहीं है, इसलिए अधिकांश बुवाई भी इसी ऋतु में की जाती है। खरीफ ऋतु की फसलों की बुवाई मानसून की वर्षा के साथ ही की जाती है, जिससे वर्षा जल का उपयोग करके न्यूनतम लागत पर इन फसलों का उत्पादन किया जाता है। अधिकांश किसानों द्वारा इन फसलों के उत्पादन पर विशेष ध्यान न दिए जाने के कारण उत्पादन में काफी कमी आती है तथा कीट एवं रोगों के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं, क्योंकि वर्षा ऋतु में वातावरण में नमी अधिक होने के कारण रोग भी अधिक पनपते हैं।

 
खरीफ फसलों की बुवाई कैसे करें, कम लागत में अच्छी उपज पाएं

भारत में मुख्य रूप से तीन ऋतुएँ होती हैं, सर्दी, गर्मी और बरसात। प्रत्येक ऋतु के अनुसार अलग-अलग फसलें बोई जाती हैं। राजस्थान की जलवायु को देखें तो फसल उत्पादन की दृष्टि से वर्षा ऋतु बहुत महत्वपूर्ण है। चूँकि यहाँ का क्षेत्र सिंचित नहीं है, इसलिए अधिकांश बुवाई भी इसी ऋतु में की जाती है। खरीफ ऋतु की फसलों की बुवाई मानसून की वर्षा के साथ ही की जाती है, जिससे वर्षा जल का उपयोग करके न्यूनतम लागत पर इन फसलों का उत्पादन किया जाता है। अधिकांश किसानों द्वारा इन फसलों के उत्पादन पर विशेष ध्यान न दिए जाने के कारण उत्पादन में काफी कमी आती है तथा कीट एवं रोगों के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं, क्योंकि वर्षा ऋतु में वातावरण में नमी अधिक होने के कारण रोग भी अधिक पनपते हैं।

1. अधिक फसल उत्पादन के लिए मिट्टी की जाँच

खरीफ में अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि मिट्टी की उर्वरता में फसल की उर्वरक माँग के अनुसार उचित मात्रा में खाद एवं उर्वरक दिए जाएँ। इसके लिए फसलों की बुवाई से एक से डेढ़ महीने पहले मिट्टी की जाँच करवाना तथा उचित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग करना आवश्यक है, क्योंकि इनकी कम और अधिक मात्रा दोनों ही उपज पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। परीक्षण हेतु नमूना लेने के लिए खेत की ऊपरी परत को थोड़ा सा हटाकर लगभग 15 सेमी गहराई तक मिट्टी निकाल लें। एक खेत में कम से कम पांच से छह स्थानों से नमूने एकत्रित किए जाते हैं। 1 किलोग्राम मिट्टी का नमूना परीक्षण के लिए भेजा जाना चाहिए। नमूने की पहचान के लिए नमूने पर किसान का नाम, खेत का नाम, गांव का नाम, जिले का नाम और पिन कोड लिखना चाहिए तथा कौन सी फसल लेनी है आदि की विस्तृत जानकारी पेंसिल से लिखनी चाहिए। प्राप्त परिणामों के आधार पर ही फसल में खाद, उर्वरक और जिप्सम का प्रयोग करना चाहिए।

2. मृदा सुधार

मृदा परिणामों के अनुसार यदि मिट्टी में लवणता और क्षारीयता अधिक है तो सुधार के लिए खाद और सड़ी हुई गोबर की खाद पर्याप्त मात्रा में मिलानी चाहिए और लवणता और क्षारीयता को सहन करने वाली फसलें बोनी चाहिए। इस प्रकार की भूमि में दलहन अच्छी तरह से नहीं उगते हैं। इस प्रकार की मिट्टी में प्रति हेक्टेयर ढैचा की हरी खाद, 50 से 300 किलोग्राम जिप्सम, 250 से 300 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद वर्षा ऋतु में मिला देनी चाहिए तथा मृदा सुधार के पश्चात अगेती रबी फसलों में सरसों, गेहूं, चना, मटर आदि की बुवाई करनी चाहिए।

3. खेत की तैयारी

खरीफ की बुवाई के लिए आवश्यक है कि मई माह में मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर दी जाए, जिससे मिट्टी में दबे अनेक रोग पैदा करने वाले कीट नष्ट हो जाएंगे। तेज धूप तथा पहली बारिश के कारण सारा पानी खेत के अंदर चला जाएगा, जिससे मिट्टी की नमी में सुधार होगा। इसके पश्चात देशी हल, कल्टीवेटर से जुताई कर ढीले खेत में बुवाई करनी चाहिए।

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4. उर्वरकों का प्रयोग

फॉस्फेटिक तथा पोटाशिक उर्वरकों की सम्पूर्ण मात्रा आवश्यकतानुसार बुवाई के समय बीज से दो से तीन सेंटीमीटर की गहराई पर फसल तथा मिट्टी को देनी चाहिए। नत्रजन की कुल मात्रा का एक तिहाई भाग बुवाई के समय उर्वरकों के साथ मिला देना चाहिए, एक तिहाई भाग बुवाई के 20-25 दिन बाद खड़ी फसल को तथा शेष एक तिहाई भाग 40-45 दिन बाद देना चाहिए। यदि मिट्टी में सूक्ष्म तत्वों की कमी हो तो सूक्ष्म तत्वों के यौगिक बुवाई के समय मिट्टी में अथवा छिड़काव द्वारा खड़ी फसल को देना चाहिए। असिंचित क्षेत्रों में नत्रजन की कुल मात्रा छिड़काव विधि से भी खड़ी फसल को दी जा सकती है। इसके लिए 600 से 800 ग्राम यूरिया का घोल प्रति लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 35 से 40 दिन बाद खड़ी फसल पर छिड़काव करना चाहिए, लेकिन इस उर्वरक का प्रयोग केवल धनी श्रेणी की फसलों में ही करना चाहिए। बुवाई के समय दलहनी फसलों के बीजों के साथ जैव उर्वरक एवं राइजोबियम कल्चर मिला देना चाहिए, जिससे उपज में 10 से 25 प्रतिशत तक वृद्धि होती है।

बीजों की बुवाई:

  • बीजों की बुवाई समय पर करनी चाहिए आकार के छोटे बीजों को 2-3 सेंटीमीटर तथा मोटे बीज वाली फसलों के बीजों को 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई में उचित नमी वाले स्थान पर होना चाहिए बुवाई हमेशा लाइन में करनी चाहिए.

  • बीज की मात्रा आवश्यकता के अनुसार ही लेनी चाहिए. बीजों की बुवाई शाम के समय करना ज्यादा अच्छा रहता है. अधिकांश खरीफ फसलों की बुवाई वर्षा शुरू होने के बाद ही की जाती है परंतु जिन स्थानों पर सिंचाई के साधन उपलब्ध हो वहां पलेवा करके जून माह के अंत तक बुवाई करने से फसल की पैदावार अच्छी रहती है.

  • बारानी खेत में कम अंकुरण की समस्याओं के कारण बीज दर सामान्य से 10 से 15% ज्यादा रखनी चाहिए तथा पौधों की संख्या 10 से 15% कम रखनी चाहिए. 

निराई गुड़ाई व खरपतवार नियंत्रण:

  • खेत को सदैव खरपतवार से मुक्त रखने के लिए खरीफ फसलों में 2-3 निराई गुड़ाई खुरपी से करते हैं . गुड़ाई कभी भी 4-5 सेंटीमीटर से गहरी नहीं करनी चाहिए.

  • बाजरा, मक्का, ज्वार की फसलों को खरपतवार रहित रखने के लिए एट्राजीन नामक रसायन की 0.25 से 0.50 किलोग्राम को 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के तुरंत बाद फसल के अंकुरण से पहले इसका छिड़काव एक हेक्टेयर में करना चाहिए मूंग मोठ ग्वार व दाल वाली फसलों में  खरपतवार नियंत्रण के लिए  बासालिन 1 किलोग्राम  को 1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई से पूर्व छिड़काव कर भूमि में चार से पांच सेंटीमीटर गहराई पर अच्छी प्रकार मिट्टी से मिला देना चाहिए.

  • मूंगफली फसल में 15 किलोग्राम सक्रिय अवयव का 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के तुरंत बाद छिड़काव करना चाहिए. मूंगफली की फसल  में सुईया बनना शुरू होने के बाद कभी भी निराई गुड़ाई या मिट्टी चढ़ाने की क्रिया नहीं करनी चाहिए.

पौध संरक्षण :

खरीफ फसलों में प्रमुख कीट व्याधि की पहचान एवं प्रबंधन उपायों की संक्षिप्त जानकारी

 कम्बल कीट

  • मानसून के आगमन के साथ ही इस कीट का जीवन चक्र आरम्भ होता है, हल्की रेतिली भूमि वाले क्षेत्रों एवं जंगल से लगे क्षेत्रों में इसका व्यापक प्रकोप होता है. यह कीट सभी फसलों को भारी क्षति पहुंचाता हैं

  • वयस्क तितली के अग्र पंख सफेद रंग के होते हैं . जिनके किनारों पर लाल धारी होती हैं. पिछले पंख भी सफेद होते है जिन पर काले रंग के चार धब्बे होते हैं .

  • वयस्क का उदर लाल रंग का होता हैं जिस पर काले रंग की बिंदियां पाई जाती हैं. इल्लियों पूर्ण विकसित अवस्था में गहरे भूरे रंग की होती हैं . इनका पूरा शरीर लाल भूरे रंग के बालों से ढका रहता है. इस कीट की यही अवस्था सबसे ज्यादा घातक होती हैं.

  • खरीफ की सभी फसलों में इसका प्रकोप होता हैं. अनुकूल परिस्थिति होने पर यह कीट फसल को पूर्णत: नष्ट कर देता हैं.

प्रबंधन

अंडों के समूहों को जो सामान्यत: पलाश, रतनजोत, जैसी झाडिय़ों के पत्तियों की निचली सतह पर होते हैं, नष्ट करें.मानसून आगमन के साथ ही प्रकाश प्रपंच की सहायता से वयस्कों को पकड़कर नष्ट करें. खेत के चारों तरफ मिट्टी पलटने वाले हल की सहायता से तीन चार गहरी (6-8 इंच) नालियां बनाएं, इनमें मिथाइल पैराथियान चूर्ण का भुरकाव करें. प्रपंच फसल के रूप में सनई का 8-10 कतारें मेड़ के पास लगाए . प्रपंच फसलों पर कीट जब आक्रमण करें तब इन फसलों पर उक्त चूर्ण का भुरकाव करें. इस कीट की इल्ली अवस्था हानिकारक हैं एवं इस इल्ली पर रोयें आये इसके पहले कीटनाशक मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत पूर्ण, 30 कि.ग्रा./हेक्टर का भुरकाव करें.

सफेद लट

  1. अंग्रेजी के ‘सी’ अक्षर की तरह गोलाई में मुड़ी हुई सफेद मोटी इल्ली जिसका सिर गहरे भूरे रंग का होता हैं . यह इल्ली भी सभी फसलों को क्षतिग्रस्त करती हैं .

  2. मानसून के साथ जीवन चक्र आरंभ होता हैं, मोटी एवं मांसल जड़ वाली फसलें ज्यादा प्रभावित होती हैं . कच्ची गोबर की खाद का प्रयोग इस कीट की तीव्रता को बढ़ाता हैं .

  3. इस कीट का वयस्क ताम्बई रंग का रात्रिचर होता है जो फसल सहित अन्य जंगली झाड़ियों की पत्तियों को खाकर पत्ती विहिन कर देता हैं एवं इल्ली अवस्थ फसलों की जड़ों को खाकर फसल को सुखा देता हैं .

प्रबंधन

  1. वयस्क भृंगों को प्रकाश प्रपंच से आकर्षित कर नष्ट करें. ज्यादा प्रभावित होने वाली फसल जैसे मूंगफली को क्लोरपायरीफास 20 ई.सी. दवा से 25 मिली./कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें .

  2. कीट ग्रस्त खेतों में आसपास मेंढ पर एवं झाड़ियों पर क्लोरपायरीफॉस 2.5 मि.ली./लीटर पानी का छिड़काव कर वयस्कों को नष्ट करें . खेत में फोरेट 10 प्रतिशत दानेदार दवाई की 20 कि.ग्रा./हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलाए .

चक्र भृंग

  1. इस कीट का वयस्क भृंग 7-10 मि.मी. लम्बा मटमैला भूरे रंग का होता हैं, इसके अग्र पंखों का आधा भाग गहरे हरे रंग का होता हैं.

  2. श्रृंगिकाएं शरीर की लम्बाई के बराबर या उससे भी लम्बी होती हैं. मुख्य रूप से सोयाबीन फसल को हानि पहुंचाने वाला इस कीट की इल्ली (ग्रब) अवस्था हानिकारक होती हैं .

  3. मादा वयस्क द्वारा अंडे निरोपण हेतु मुख्य तने पर समानांतर चक्र या गर्डल बनाए जाने पर उस स्थान से इल्ली द्वारा तने के अंदर सुरंग बनाने के कारण क्षति अधिक होती हैं .

प्रबंधन

  1. ग्रीष्मकालीन गर्मी की गहरी जुताई, मानसून पश्चात् बोनी, एवं खलिहान मेड़ आदि से पुरानी फसल के डंठल भूसा आदि की सफाई अवश्य करें.

  2. फसल घनी नही बोये, घनी फसल कीट को अनुकूल वातावरण प्रदाय कर प्रकोप को बढ़ाती हैं .फसल में खरपतवार प्रबंधन प्रभावी करें.

  3. खरपतवार भी इस कीट को प्रश्रय देते हैं.फसल की लगातार निगरानी करें एवं पौधों पर चक्र बनना प्रारंभ होते ही 2-4 दिनों के अंदर ग्रसित पौधों के उन भागों को यथा संभव तोड़कर नष्ट कर देवें .

  4. रासायनिक प्रबंधन हेतु प्रकोप दिखाई देते ही क्वीनालफास 25 ई.सी. 0.05: या सायपरमेथ्रिन 20 ई.सी. 0.006: या ट्रायजोफास 0.15 प्रतिशत का छिड़काव करें.

इल्ली वर्गीय कीट

  1. इस समूह के कीटों में प्रमुख हैं चने की इल्ली, तम्बाकू की इल्ली एवं हरी अर्धकुण्डलक इल्ली . ये कीट खरीफ की सभी फसलों पर आक्रमण करते हैं.

  2. दलहनी फसलें जैसे मूंग, उड़द, अरहर एवं तिलहनी फसलें जैसे सोयाबीन, मूंगफली आदि इन कीटों से ज्यादा प्रभावित होती हैं. इन फसलों के अलावा खरीफ की सब्जियां भी इन कीटों से प्रभावित होती हैं. यह इल्ली वर्गीय कीट सामान्यत: पत्तियों से पर्णहरित को खुरच कर खाते हैं.

  3. इल्लियों की प्रगत अवस्था में पत्तियों में छेद कर पत्तियों की जालीनुमा बना देती हैं. फसल की प्रगत अवथा में फलियों में छेद कर दानों को खाती हैं. हरी अर्ध कुण्डलक इल्ली सोयाबीन फसल अधिक घनी होने पर फूल वाली अवस्था में कली एवं फूल को भी क्षति पहुंचाती हैं . जिसके कारण फलियों की संख्या में भारी, गिरावट आती हैं. इस तरह के पौधो में सिर्फ शीर्ष पर कुछ फलियां दिखाई देती हैं. उत्पादन में गंभीर क्षति होती हैं.

प्रबंधन

  1. मृदा परीक्षण प्रतिवेदन के आधार पर संतुलित उर्वरक, प्रजातिनुसार भूमि के प्रकार के अनुसार बीजदर रखकर संतुलित पौध संख्या रखें. इससे कीट प्रकोप कम होगा.

  2. प्रकाश प्रपंच एवं उक्त तीनों प्रकार की इल्लियॉं के फेरामोन प्रपंच का प्रयोग कर कीटो की निगरानी एवं नियंत्रण दोनों करें.कीट प्रकोप की आरंभिक अवस्था में बिवेरिया बेसियाना 400 ग्राम या तरल स्वरूप में 400 मि.ली. कल्चर के घोल को 200 लीटर पानी में घोल कर. एकड़ में संध्याकालीन समय में छिड़काव करें. अंतिम विकल्प के रूप में आवश्यकतानुसार इमेमेक्टिन बेंजोएट 5 एसजी की 40 ग्राम मात्रा या राइनाक्सीपायर की 30 मि.ली. मात्रा को 200 लीटर पानी में घोलकर एक एकड़ क्षेत्र में छिड़काव करें.

तने की इल्ली

  1. इस वर्ग के कीट का प्रकोप मुख्य रूप से ज्वार, मक्का एवं घान में होता हैं. कीट का वयस्क घरेलू मक्खी की तरह होता हैं . आकार घरेलू मक्खी से छोटा होता हैं . इसकी इल्ली (मेगट) सफेद रंग की पैर विहीन होती हैं. यही मेगट पौधों की पोंगली से होकर शीर्ष भाग यानी प्रांकुर को क्षतिग्रस्त कर मृतनाड़ा बनाती हैं. प्रकोप देर से होने पर मृत नाड़ा नही बनता हैं एवं पौधे का तना अंदर से खोखला होकर उत्पादन प्रभावित करता हैं.

प्रबंधन

अनाज वाली फसलों की मानसून आने के साथ बोनी करें. बोनी में विलम्ब कीट प्रकोप को बढ़ाता हैं.
कीट ग्रस्त पौधो को नष्ट करें. देर से बोनी होने पर बीज दर 10-15 प्रतिशत बढ़ाकर बोयें.
फसल 30-35 दिन की होने पर कार्बोफ्यूरान दानेदार दवाई 20-25 कि.ग्रा./हेक्टर का प्रयोग करें.

रस चूसक कीट

  1. असंतुलित पोषक तत्वों खासकर नत्रजन युक्त उर्वरकों के प्रयोग एवं ज्यादा मात्रा में बीजदर के प्रयोग से सभी फसलों में अनुकूल मौसम (अधिक नमी अधिक तापमान) रहने पर रस चूसक कीटों का प्रकोप होता हैं. इन कीटों में सफेद मक्खी, भूरा माहू, काला माहू, एवं जैसिड (हरा मच्छर) प्रमुख हैं . इन रस चूसक कीटों से फसल की बढ़वार रुक जाती हैं .

  2. दाने भरने की स्थिति में यदि प्रकोप हो तो दाने बारीक पड़ जाते है . रस चूसक कीट माहू सामान्यत: रस चूसने के बाद शहद जैसा चिपचिपा पारदर्शी तत्व स्त्रावित करते हैं . इस स्त्राव पर काले रंग की फफूंद की बढ़वार आती हैं . जिससे प्रकाश संश्लेषण बाधित होता हैं.

  3. उक्त हानि के अलावा रस चूसक कीट रोगजनक विषाणु के वाहक होते हैं एवं स्वस्थ फसलों में विषाणु जन्य रोगों को फैलाते हैं इन रोगों से फसल कुरूप होकर बांझ हो जाती हैं एवं गंभीर क्षति होती हैं.

प्रबंधन  

  • नत्रजन युक्त उर्वरकों का संतुलित एवं संयमित प्रयोग करें . बीजदर ज्यादा नहीं रखें, संतुलित पौध संख्या में हवा एवं सूर्य प्रकाश का संचार होता है. जिससे रस चूसक कीटों का प्रयोग घटता हैं .

  • सब्जी वाली फसलों में प्रपंच फसल के रूप में बरबटी की 4-5 कतारे लगाए, पीले रंग के स्टीकी ट्रेप (चिपकने वाले प्रपंच) का प्रयोग करें. विषाणु रोग से ग्रस्त पौधे (पीला मोजेक, चुरडा रोग, विकृत एवं छोटी पत्तियां आदि) को उखाड़कर नष्ट करें .

  • सब्जी वाली फसलों में नीम तेल (5 मि.ली./लीटर पानी) अन्य फसलों में इमिडाक्लोप्रिड (0.5 मी.ली./लीटर पानी) का घोल बनाकर 250 लीटर प्रति एकड़ की दर से घोल कर छिड़काव करें .