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white rot disease: सरसों में सफेद रोली रोग से निपटने के किसान तुरंत करें ये काम, लहलहा उठेगी फसल

 
white rot disease:  सरसों एक प्रमुख तिलहन फसल है. इस फसल का भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है. वहीं, इन दिनों देश के कई राज्यों में सरसों की फसल में रोग लगने की शिकायतें भी आ रही हैं. खास कर सफेद रोली नामक रोग ने किसानों को सबसे अधिक परेशान कर दिया है. कहा जा रहा है कि कड़ाके की ठंड और कोहरे की वजह से इस रोग का प्रकोप सरसों की फसल के ऊपर देखने को मिल रहे है. लेकिन अब किसानों को चिंता करने की जरूरत नहीं है. नीचे बताए गए उपायों को अपनाकर वे सरसों की फसल को बर्बाद होने से बचा सकते हैं. Also Read: PM Kisan Yojana: 31 जनवरी है तक करवा लें eKYC, नहीं तो अटक जाएगी 16वीं किस्त,
white rot disease: सफेद रोली रोग फसलों के लिए घातक
जानकारी के अनुसार असल में यह सफेद रोली रोग सरसों की फसल को भरपूर मात्रा में धूप नहीं मिलने से होता हैं. ऐसे में किसी किसान की फसल में यह बीमारी लग भी गई है तो उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि किसान समय रहते हुए इसका इलाज कृषि विभाग द्वारा बताए गए कुछ आसान उपायों से कर सकते हैं. बस ध्यान देने की बात यह है कि अगर समय रहते हुए इस बीमारी का इलाज नहीं किया जाए तो यह फसल का 15 फीसदी दाना खराब कर सकती है. जिससे फसल के उत्पादन पर असर पड़ सकता हैं.
white rot disease: सर्दी की वजह से फसल हो रही खराब
देश के कई सरसों उत्पादक राज्यों में बीते दिनों से सर्दी का प्रकोप जारी है. कोहरा छाया हुआ है, सूरज के दर्शन नहीं हो पा रहे हैं. इसकी वजह से खेतों में लहलहा रही फसलों को पूरी तरह से सूर्य की किरणें और सरसों की खड़ी फसल को विटामिन डी भरपूर मात्रा में नहीं मिल पा रही है. इससे सरसों की फसल को नुकसान होने का खतरा बना हुआ है. ऐसे में किसानों को सफेद रोली लगने की स्थिति में फसल पर प्रति एकड़ 25 किलो सल्फर पाउडर का छिड़काव करना चाहिए. इसके अलावा किसान केरोफेन लिक्विड कीटनाशक भी छिड़क सकते हैं. Also Read: Mustard Price 29 January 2024: सरसों के दाम गिरे, तुरंत चेक करें आज का ताजा रेट
white rot disease: जानें सफेद रोली रोग लगने के लक्षण
सरसों के पौधों में सफेद रोली बीमारी लगने से पौधे में भोजन लेने की क्षमता कम हो जाती है. साथ ही रोली सरसों के पत्तों के साथ तने के रस चूस लेती है, जिससे पौधा पनपता नहीं हैं और दाना कमजोर पड़ जाता है. ऐसे में उत्पादन में कमी आ जाती है और किसानों की मेहनत पर पानी फिर जाता है.