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किसानों के लिए बेहद लाभदायक है गेहूं की सोना मोती किस्म, 34 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है पैदावार, जानें पूरी जानकारी

 

कृषि विभाग, बिहार ने रबी मौसम, वर्ष 2023-24 में गेहूं की पारंपरिक किस्मों को संरक्षित और बढ़ावा देने के उद्देश्य से राज्य के सभी जिलों में गेहूं की सोना मोती, वंशी और टिपुआ किस्मों की खेती को प्रोत्साहित किया है। इसके अलावा, सोना मोती किस्म के बीज दो बीज गुणन क्षेत्रों यानी बेगुसराय जिले के कुंभी (8 हेक्टेयर) और गया जिले के खिरयामा (6 हेक्टेयर) क्षेत्र में उत्पादित किए गए थे।


सोना मोती किस्म जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील है
अग्रवाल ने कहा कि गेहूं की सोना मोती किस्म एक पारंपरिक किस्म है और माना जाता है कि इस किस्म को हड़प्पा काल से ही उगाया जाता रहा है. इस किस्म के गेहूं के दाने गोल, सुडौल और चमकदार होते हैं और मोती के दाने जैसे दिखते हैं।

उन्होंने कहा कि गेहूं की यह किस्म रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए अधिक प्राकृतिक है। ये पोषण और स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक रूप से उपयोगी हैं। पारंपरिक किस्में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और खनिजों का अच्छा स्रोत हैं। पारंपरिक किस्में कम समय में पक जाती हैं और अधिक उत्पादकता देती हैं। ये किस्में जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील हैं। पारंपरिक किस्में पानी और पोषक तत्वों को अच्छी तरह से सहन करती हैं और औसत तापमान और मिट्टी की आवश्यकताओं को अच्छी तरह से संतुलित करती हैं। ये किस्में समय के साथ अपने पर्यावरण के अनुरूप ढल गई हैं।

पारंपरिक किस्में अधिक उत्पादकता के साथ भी प्राकृतिक तरीके से अपने क्षेत्र में संतुलन बनाए रखती हैं। इन किस्मों के उत्पादन में किसानों को कम खर्च और मेहनत की आवश्यकता होती है. ये किस्में स्थानीय वाणिज्य और खाद्य संस्थानों को स्थानीय लोगों को उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों की आपूर्ति करने में मदद करती हैं। इन किस्मों की बढ़ती मांग के कारण इनके संरक्षण की आवश्यकता है। ये किस्में रोगों और कीटों के प्रति प्रतिरोधी हैं। पारंपरिक किस्मों को बैक्टीरिया और जैविक उपचार के बिना सुरक्षित रूप से उगाया जा सकता है।

पारंपरिक किस्में स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद
पारंपरिक गेहूं की किस्मों में ग्लूटेन और ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होने के कारण यह मधुमेह (कपैमजमे) और हृदय रोग (भमंतज कपैमम) से पीड़ित मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद है। साथ ही इसमें अन्य अनाजों की तुलना में कई गुना अधिक मात्रा में फोलिक एसिड होता है, जो ब्लड प्रेशर और हृदय रोगियों के लिए रामबाण साबित होगा। आज के युग में खान-पान में गड़बड़ी और रासायनिक खाद-बीज के कारण लोग मधुमेह और हृदय रोग से पीड़ित हो रहे हैं।

आत्मा योजना के अंतर्गत परंपरागत परंपराओं पर किसान पाठशाला का आयोजन
ऐसे में कृषि विभाग ने रबी सीजन वर्ष 2023-24 में प्रत्येक जिले के दो-दो गांवों में विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके पारंपरिक गेहूं की खेती जैविक विधि से शुरू की है. सीतामढी जिले में आत्मा योजना के माध्यम से प्रत्येक प्रखंड में सोना मोती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक-एक किसान पाठशाला के माध्यम से प्रत्यक्षण का आयोजन किया गया, जिसमें किसानों को बीज के अलावा एनपीके कंसोती, बोरॉन इत्यादि, माइक्रोन्यूट्रिएंट वर्मी कम्पोस्ट, ट्राइकोड्रामा आदि दिया गया। उपलब्ध कराये गये।

समय-समय पर किसानों को बीज उपचार, बुआई की जीरो टिलेज तकनीक का महत्व एवं पोषक तत्व प्रबंधन, खर-पतवार प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन एवं एकीकृत कीट प्रबंधन आदि महत्वपूर्ण पहलुओं पर तकनीकी जानकारी विस्तार कार्यकर्ताओं के माध्यम से उपलब्ध करायी गयी।


फसल परीक्षण एवं कटाई प्रयोग में प्राप्त उत्साहवर्धक परिणाम
फसल परीक्षण-फसल प्रयोग में सीतामढी जिले के बथनाहा प्रखण्ड अंतर्गत ग्राम सोनमा में 33 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त हुआ। फसल परीक्षण एवं फसल प्रयोग में सोना मोती किस्म की औसत उपज 29 क्विंटल से 34 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त हुई है। कटाई अभी भी जारी है. सोना-मोती किस्म का उत्पादन करने वाले किसान इस उत्पादन से प्रोत्साहित हैं और उन्होंने गेहूं की इस पारंपरिक किस्म का क्षेत्र बढ़ाने में सहयोग करने की इच्छा व्यक्त की है।

बाजार में पारंपरिक किस्मों की अच्छी कीमत
बाजार में सोना मोती गेहूं की मांग बढ़ती जा रही है और इसकी बाजार कीमत 50 रुपये से लेकर 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक जा रही है. ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी इसकी मांग बढ़ रही है और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग इसका आटा खाना पसंद कर रहे हैं। अगले सीजन में इसकी बड़े पैमाने पर खेती की जायेगी. कृषि सचिव संजय कुमार अग्रवाल की इस पहल से न केवल किसानों की आय बढ़ रही है बल्कि जो लोग ऐसी किस्मों का उपयोग करना चाहते थे उन्हें भी लाभ मिल रहा है और किसानों में भी काफी खुशी है.

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